माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए श्री सूक्त का पाठ करें | SHREE SOOKTAM | sharad poornima vishesh


प्रिय पाठकों आज माता लक्ष्मी  को प्रसन्न करने वाले सूक्त के विषय में बताने जा रहा हूँ ! 
ऋग्वेद में माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाले सूक्त का वर्णन मिलता है ! इन् पंद्रह मन्त्रों से जो व्यक्ति प्रतिदिन हवं करता है अथवा प्रति दिन इस सूक्त का पाठ करता है उसके घर में लक्ष्मी जी का सदेव के लिए वास हो जाता है जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है ! सज्जनों स्थिर लक्ष्मी के लिए श्री सूक्त का पाठ प्रतिदिन अवश्य करें और विशेष पर्वों जैसे  शरद व कार्तिक पूर्णिमा , दीपावली , संक्रांति  पर इस सूक्त के द्वारा हवन करना चाहिये ! 


श्री सूक्तम


ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।1


भावार्थ :- हे अग्नि देव ! आप भूत – भविष्य के ज्ञाता है! इसलिए मेरे निमित स्वर्ण , स्वर्ण रजत व श्वेत पुष्पमाला धारण करनेवाली, चंद्रमा के समान प्रकाश वाली हिरण्यमयी देवी महालक्ष्मी को आमंत्रित करें !   


तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मी मन पगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।2

भावार्थ :- हे अग्निदेव ! आप मेरे हित के लिए लक्ष्मी देवी का आवाहन करें जिनसे मैं स्वर्ग,गौव पुत्र-पौत्रदिक की याचना कर सकूं !


अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।3

भावार्थ :- जो लक्ष्मी देवी अश्वस्थ में विराजमान है, संसार के जीवों को आनन्द प्रदान करने वाली, दिव्य प्रकाश वाली और जीवों को आश्रय प्रदान करने वाली उन महालक्ष्मी का मैं आवाहन करता हूँ ! वह देवी का मेरे घर में सदैव प्रतिष्ठित रहे !


कां सोऽस्मितां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।4

भावार्थ :- जिन देवी के स्वरुप का वर्णन मन और वाणी से नहीं किया जा सकता ! ऐसी शोभावाली, मंद – मंद मुस्कुराने वाली, कोमल हृदय वाली, दीप्तिमान आभा वाली भक्तों की मनोअभिलाषित इच्छाओं की पूर्ति करने वाली लक्ष्मी जी का मैं आवाहन करता हूँ ! 


चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।5

भावार्थ :- चन्द्रमा के प्रकाश सदृश, अपनी ही कांति व् कीर्ति से शोभित, देवताओं द्वारा पूजित कमल पर विराजमान, शरणागत वत्सला हे लक्ष्मीदेवी मैं आपकी शरण गृहण करता हूँ आप मेरी दरिद्रता को दूर करें!


आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।6 

भावार्थ :- हे देवी ! आपके सूर्य सदृश तेज़ से एक विशेष प्रकार का वृक्ष पैदा हुआ था ! उसमे बिना पुष्पों के ही फल लगते थे ! उसके पश्चात् आपके कर कमलों से बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति हुई ! उसी बिल्ववृक्ष का फल मेरी दरिद्रता को दूर करे !


उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।7

भावार्थ :- हे धन देने वाली देवी ! आप मुझे इंद्र कुबेर आदि देवताओं जैसा तेज़, यश, वैभव प्रदान करें, क्योंकि मैं सांसारिक जीव होने के कारण इन पदार्थों का अभिलाषी हूँ!


क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।8

भावार्थ :- लक्ष्मीजी की बड़ी बहिन व् भूख प्यास रुपी दरिद्र देवी का मैं त्याग करता हूँ ! हे महालक्ष्मी देवी आप मेरे सभी कष्टों को दूर करके, मेरे गृह में ऐश्वर्य व धन की वृद्दि करें!


गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।9

भावार्थ :- सुगन्धित पुष्पार्पण से ही प्रसन्न होने वाली, किसी से भी प्रभावित न होने वाली, धन धान्य व् समृद्धि प्रदान करने वाली, सभी जीवों की स्वामिनी, लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूँ !  

मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।10

भावार्थ :- हे विष्णुप्रिया ! आपकी कृपा से मुझे पशु व् अन्न आदि की पदार्थों और यश व् धन की प्राप्ति हो !

कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।11

भावार्थ :- यहाँ कर्दम ऋषि से प्रार्थना की गई है कि है कर्दम ! आप मेरे गृह में लक्ष्मी को निवास करने के लिए प्रेरित करें !

आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च-देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।12

भावार्थ :- हे वरुण देव ! आप मनोहर पदार्थ उत्पन्न करें ! लक्ष्मी पुत्र चिक्लीत आप अपनी माता व दिव्या गुणों से युक्त सभी को आश्रय प्रदान करने वाली देवी महालक्ष्मी सहित मेरे घर में निवास करें ! 

(आनन्द, कर्दम, चिक्लीत, श्रीत लक्ष्मीजी के चार पुत्र है ! )


आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।13

भावार्थ :- हे अग्नि देव ! आप आदर शरीरवाली, पुष्टि प्रदान करने वाली, पीतवर्णी कमल की माला धारण करनेवाली, हिरण्यमयी, चन्द्र की प्रभा के समान प्रभासित लक्ष्मी देवी का मेरे गृह में आवाहन करें !    


आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।14

भावार्थ :- हे अग्नि देव आप उन लक्ष्मी देवी का मेरे गृह में आवाहन करे जो स्वजनों के लिए दया मूर्ति व दुष्टों को दंड देने वाली, सौन्दर्यरूपा, स्वर्णिम माला धारण करने वाली, सूर्य के सामान है !

(जैसे सूर्य अपने प्रकाश व् बर्षा द्वारा जगत का पालन पोषण करता है वैसे ही लक्ष्मी देवी सृष्टि के जीवों का वैभव व् ज्ञान के द्वारा पोषण करती है !)


तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।15

भावार्थ :- हे अग्निदेवी! आप मेरे हितार्थ लक्ष्मी देवी का आवाहन करें, जिससे मैं उन देवी से स्वर्ण, ऐश्वर्य, घोड़े, गाय, पुत्र पौत्र आदि की याचना कर सकूँ !


यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।16

भावार्थ :- लक्ष्मी प्राप्ति के आकंक्षी प्राणी को सर्वथा शुद्ध होकर नित्य प्रति गाय के घी से हवन करते हुए श्री सूक्त की पंद्रह ऋचाओ का पाठ करना चाहिये !

  
इति श्री सूक्तं परिपूर्णं


:-  पं योगेश पौराणिक 


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